: स्वाजीलैंड की महिलाएं कमर से ऊपर नंगी होती हैं, जबकि ग्रामीण भारतीय स्त्री हाथ भर घूंघट काढ़ती है : क्या स्त्री की पहचान उसके अर्द्धनग्न और केवल अन्नमय कोश तक ही सीमित है : सवाल कि केवल सौंदर्य तक ही सीमित रहना चाहिए महिला दिवस :
कुमार सौवीर
लखनऊ : आज महिला दिवस है। यह दिवस क्यों बना या कब से बनाया जाना शुरू हुआ, आज इस बहस में बेमानी है। वजह है इस मौके पर एक नयी बहस शुरू हो गयी है। सवाल यह उठा है कि महिला-दिवस क्या केवल महिला के सौंदर्य उपासना तक ही सीमित आयोजित किया जाए। किसी भी महिला का वंदन केवल इसलिए किया जाए कि वह खूबसूरत है, एक देह तक सीमित है।
उपनिषद में ऋषियों ने मानव की चेतना को पाँच भागों में बांटा है। इसी विभाजन को पंच-कोश कहा जाता है। अन्नमय कोश का अर्थ है इन्द्रिय चेतना। प्राणमय कोश, अर्थात् जीवनी शक्ति। मनोमय कोश, यानी विचार बुद्धि। विज्ञानमय कोश, यानी अचेतन सत्ता एवं भाव प्रवाह। तथा आनन्दमय कोश का अर्थ होता है आत्म-बोध यानीआत्म-जागृति। किसी भी प्राणी का स्तर ऐसी चेतनात्मक परतों के हिसाब से ही विकसित होता जाता है। तो पहले नम्बर पर तो है अन्नमय कोश के प्राणी। मसलन कीड़े-मकौड़ों-पतंगे जैसे तो जलचर-थलचर-नभचर वगैरह, जिनकी चेतना केवल उसकी इन्द्रियों की प्रेरणा और आवश्यकताओं के इर्द गिर्द ही घूमती रहती है। शरीर ही उनका सर्वस्व होता है। उनका ‘स्व’ काया की परिधि में ही सीमित रहता है। इससे आगे की न उनकी इच्छा होती है, न विचार, और न ही तत्सम्बन्धी वैचारिक-क्रिया। इस वर्ग के प्राणियों को अन्नमय कह सकते हैं। आहार ही उनका जीवन है। पेट तथा अन्य इन्द्रियों का समाधान हो जाने पर वे संतुष्ट रहते हैं।
जबकि चैतन्य भाव सर्वश्रेष्ठ है।
मगर स्वनामधन्य कांग्रेसी, कलाकार, लेखक चंचल-भूजी ने महिला दिवस की पूर्व संध्या में स्त्री को उसके सौंदर्य तक सीमित कर देने की कोशिश की है। कहने की जरूरत नहीं कि उनका यह प्रक्रम किसी भी सौंदर्यशाली स्त्री को केवल अन्नमय कोश तक ही सम्पूर्ण समेटने की कोशिश है। इसीलिए भूजी-जी को जब महिला दिवस की याद आयी तो वे सीधे अफ्रीका के दक्षिणी देश लेसेथो के पड़ोसी स्वाजीलैंड मुल्क पहुंच गये, जहां का राजा अपनी 32वीं शादी अपनी पोती की उम्र से भी कम वाली युवती से करना चाहता है, और पूरी ब्रिटिश सरकार उस राजा की वकालत में जुटी है। और वह लड़की उस राजा से अपना पिंड छुडा़ने के लिए जहां-तहां अपना सिर पटक रही है। सही बात है, ऐसा टनाटन्न खुला सौंदर्य उनको जौनपुर में कहां दिख पाता। सिंगरामऊ में तो एक हाथ का घूंघट तान लेती हैं वहां की महिलाएं भूजी-जी को देखते ही। यह इसलिए ज्यादा बहस मांगता है कि अपनी पोस्ट में भूजी ने जिस फोटो को लगाया है, वह स्वाजीलैंड की महिलाओं की है, जो कमर से ऊपर वस्त्रहीन होती हैं, परम्परा और जीवनशैली के तहत।
बहरहाल, आइये बांचिये कि भूजी-जी ने क्या लिखा है इस मसले पर। फोटो के साथ। कल महिला दिवस है . हम इसे एक दिन पहले ही निपटा ले रहे हैं . गो कि हमारे जैसे जैसों के लिए हर रोज महिला दिवस रहता है . सरे राह चलते चलते पूज लेते हैं , प्यार कर लेते हैं . करुणा का प्रसाद पाकर धन्य हो लेते हैं . वह किसी भी रूप में हो है तो वन्दनीय ही . हम पुरुष उससे इस लिए भी चिढते हैं कि सौंदर्य एकतरफा उधर ही क्यों दे दिया गया , हमें भी तो कुछ मिलना चाहिए था . प्रकृति हँसती है - कमबख्त तुम्हे जो मिला उसी को नहीं सम्हाल पा रहे हो ,सौंदर्य को कहाँ से पचा पाते . बाज दफे तो पुरुष को भी सौंदर्य का सहारा लेने के लिए औरत होना पड़ा है .
दूर क्यों जा रहे हो विष्णु जी को देखो . भस्मासुर से बचने के लिए जब शिव भागे हैं विष्णु जी मोहनी का रूप लेकर आये हैं . मानव मन की कुटिलता देखो भस्मासुर शिव को छोड़कर 'काम ' के सामने झुक जाता है . जिस काम को शिव ने भस्म किया है . उसे अनंग बनाया है . वही काम आज शिव को जीवन दे रहा है . भस्मासुर मोहनी पर मोहित होता है और वहीं भस्म हो जाता है . इस लिए हे मित्र ! मिथक कथाओं को रातो मत , कोशिश करो उसे जीने की . उसके मर्म को जान लो . जीवन सुफल हो जायगा . हमारे नेता डॉ लोहिया ने कहा है -हर औरत खूबसूरत होती है कोइ कुछ कम कोइ कुछ ज्यादा . ' इन्हें बाँधो मत , इन्हें उन्मुक्त जीवन जीने का माहौल दो . बहुत पाप किया है इस समाज ने . प्रायश्चित तो करो . रिस्तो का निर्वहन करो . एक बार फिर डॉ लोहिया की युक्ति -वायदाखिलाफी और बलात्कार छोड़ कर ,औरत और मर्द के सारे रिश्ते जायज हैं . जीना है तो इस रिश्ते पर जियो .
सौंदर्य हर औरत के पास होता है यह उसका स्थाई भाव है . और यह सौंदर्य देश ,काल और परिस्थिति से तय होता है .
हमने आज ही महिला दिवस मना लिया भाई ,ताकी यह कल काम आये . क्यों कि आज कल पत्थरबाजी जोरो से हो रही है .मौसम में हिंसा है . हम अपने हिस्से के मोहब्बत की छाँव में बैठे गुनगुना रहे हैं .
